हिंदी वर्ण
हिंदी वर्ण की परिभाषा – हिंदी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वनि वर्ण कहलाती है। यह मूल ध्वनि होती है, इसके और खण्ड नहीं हो सकते। जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि।
जैसे ‘सवेरा हुआ’, इस वाक्य में दो शब्द है, ‘सवेरा’ और ‘हुआ’। ‘सवेरा’ शब्द में साधारण रूप से तीन ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं- स, वे, रा। इन तीन ध्वनियों में से प्र्यत्येक ध्वनि के खण्ड हो सकते हैं। ‘स’ में दो ध्वनियाँ हैं- स्, अ और इनके कोई और खण्ड नहीं हो सकते, इसीलिए ‘स्’ और ‘अ’ मूल या सबसे छोटी ध्वनियाँ हैं। यह मूल या सबसे छोटी ध्वनियाँ ही वर्ण कहलाती हैं। इस तरह ‘सवेरा’ शब्द में स्, अ, व्, ए, र्, आ- यह छह मूल ध्वनियाँ हैं तो ‘हुआ’ शब्द में ह्, उ, आ- यह तीन मूल ध्वनियाँ या वर्ण हैं।
हिंदी वर्णमाला- वर्णों के समुदाय को ही वर्णमाला कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में 44 वर्ण हैं। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिंदी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं – स्वर एवं व्यंजन।
- स्वर– जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता हो और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों, वे स्वर कहलाते है। यह संख्या में ग्यारह हैं-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं – ह्रस्व स्वर, दीर्घ स्वर एवं प्लुत स्वर।
- ह्रस्व स्वर– जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। यह चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।
- दीर्घ स्वर– जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। यह हिंदी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
विशेष – दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहां दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है।
- प्लुत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है।
मात्राएँ – स्वरों के बदले हुए स्वरूप को मात्रा कहते हैं। स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं:-
स्वर मात्राएँ
अ – कम (अ वर्ण (स्वर) की कोई मात्रा नहीं होती)
आ ा – काम
इ ि – किसलय
ई ी – खीर
उ ु – गुलाब
ऊ ू – भूल
ऋ ृ – तृण
ए े – केश
ऐ ै – है
ओ ो – चोर
औ ौ – चौखट
व्यंजनों का अपना स्वरूप निम्नलिखित हैं- क् च् छ् ज् झ् त् थ् ध् आदि।
अ लगने पर व्यंजनों के नीचे का (हल) चिह्न हट जाता है। तब यह इस प्रकार लिखे जाते हैं –
क च छ ज झ त थ ध आदि।
- व्यंजन – जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं। अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। यह संख्या में 33 हैं। इसके निम्नलिखित तीन भेद हैं – स्पर्श, अंतःस्थ एवं ऊष्म।
- स्पर्श – इन्हें पाँच वर्गों में रखा गया है और हर वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं। हर वर्ग का नाम पहले वर्ग के अनुसार रखा गया है। जैसे:-
कवर्ग- क् ख् ग् घ् ड़्
चवर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्
टवर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ्)
तवर्ग- त् थ् द् ध् न्
पवर्ग- प् फ् ब् भ् म्
- अंतःस्थ – यह निम्नलिखित चार हैं:-
य् र् ल् व्
- ऊष्म – यह निम्नलिखित चार हैं:-
श् ष् स् ह्
जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वह संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है। यह दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं। जैसे:-
क्ष=क्+ष अक्षर
त्र=त्+र नक्षत्र
ज्ञ=ज्+ञ ज्ञान
कुछ लोग क्ष् त्र् और ज्ञ् को भी हिंदी वर्णमाला में गिनते हैं, पर यह संयुक्त व्यंजन हैं। अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।
संस्कृत में स्वरों को अच् और व्यंजनों को हल् कहते हैं। व्यंजनों में दो वर्ण और होते हैं – अनुस्वार और विसर्ग।
- अनुस्वार – इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका चिन्ह (ं) है। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।
- विसर्ग – इसका उच्चारण ह् के समान होता है। इसका चिह्न (:) है। जैसे-अतः, प्रातः।
अनुनासिक – हर वर्ग के अंतिम वर्ण अनुनासिक कहलाता है, क्योंकि इसका उच्चार नासिका (नाक) से किया जाता है, इसके लिए स्वर के ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा दिया जाता है। जैसे-हँसना, आँख। लेकिन आजकल आधुनिक पत्रकारिता में सुविधा और स्थान की दृष्टि से चंद्रबिन्दु को लगभग हटा दिया गया है। उसकी जगह सिर्फ़ बिन्दु ( Ç) लगाया जाता है, लेकिन भाषा की शुद्धता की दृष्टि से चन्द्रबिन्दु लगाया जाना चाहिए।
हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर तथा 33 व्यंजन गिनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़ने पर हिंदी के वर्णों की कुल संख्या 48 हो जाती है।
हलंत – जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित किया जाता है तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है। हलयुक्त व्यंजन हलंत वर्ण कहलाता है। जैसे:-सतत्
वर्णों के उच्चारण – स्थान – मुख के जिस भाग से जिस वर्ण का उच्चारण होता है उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं।
उच्चारण स्थान तालिका
क्रम | वर्ण | उच्चारण-स्थान | श्रेणी |
१. | अ आ क् ख् ग् घ् ड़् ह् | विसर्ग कंठ और जीभ का निचला भाग | कंठस्थ |
२. | इ ई च् छ् ज् झ् ञ् य् श | तालु और जीभ | तालव्य |
३. | ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण् ड़् ढ़् र् ष् | मूर्धा और जीभ | मूर्धन्य |
४. | त् थ् द् ध् न् ल् स् | दाँत और जीभ | दंत्य |
५. | उ ऊ प् फ् ब् भ् म | दोनों होंठ | ओष्ठ्य |
६. | ए ऐ | कंठ तालु और जीभ | कंठतालव्य |
७. | ओ औ | कंठ जीभ और होंठ | कंठोष्ठ्य |
८. | व् | दाँत जीभ और होंठ | दंतोष्ठ्य |