भाषांतरकार और अनुवादक – दो सर्वथा भिन्न भाषा-आधारित कौशल
विश्व में हज़ारों भाषाएँ बोली जाती हैं। जहाँ यह भाषाएँ सामान लोगों को जोड़ती हैं, वहीं विविध-भाषियों को अलग भी करती हैं। अच्छा, यह बताइये कि यदि एक हिंदी और एक रशियन व्यक्ति को साथ बैठा दें, या एक भारतीय को जापानी में लिखी हुई पुस्तक लाकर दे दें, तो क्या संवाद अथवा ज्ञानोपार्जन संभव है? बिलकुल नहीं।
इसीलिए दो भिन्न सस्कृतियों या देशों के बीच में संवाद शुरू होने के लिए हमेशा किसी ऐसे माध्यम (व्यक्ति या मशीन) की जरूरत होती है, जो दोनों भाषाओं में निपुण हो। यही कारण है कि भाषांतरकार (Interpreter) और अनुवादक (Translator) दोनों के कार्यों को दुनिया के हर कोने में विशिष्ट महत्त्व दिया जाता है। बहुत ही सामान होते हुए भी इन दोनों का काम एक- दूसरे से सर्वथा भिन्न है। इतना भिन्न, कि यदि हम इन्हें पृथ्वी के दोनों ध्रुवों की तरह पृथक मानें, तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
अगर आप इन दोनों कौशलों को एक-सा मानते हैं, तो यह जान लें कि बहुत ही कम व्यक्ति इन दोनों कामों में एक साथ निपुण होते हैं। आइये समझाते हैं, क्यों –
अनुवाद या ट्रांसलेशन क्या है?
अनुवादक का काम एक भाषा में किये गए कार्य को दूसरी भाषा में, बिना उसके अर्थ और भाव को बदले, परिवर्तित करना होता है। इसके लिए वह सहायक पाठ्य सामग्री, विडियो या स्वयं के अनुभव का सहारा ले सकता है। मुख्यतः, अनुवादक किसी दूसरी भाषा को अपनी मातृभाषा में परिवर्तित करते हैं, क्योंकि लिखे हुए अनुवाद का नयी भाषा में भी बराबर प्रभावशाली होना आवश्यक है।
इंटरप्रिटेशन या भाषांतरण क्या है?
दुभाषिया एक अपभ्रंश शब्द है जो द्विभाषी से बना है। इसका अर्थ होता है – दो भाषाओं का ज्ञाता। लिखित अनुवाद करने के काम से उलट, दुभाषिये के काम में सावधानी कम और वाक्पटुता अधिक चाहिए होती है।
भाषांतरकार और अनुवादक – कार्यशैली में अंतर
इन दो कार्यक्षेत्रों के अनुसार ही इनमें काम करने की शैली भी अलग होती है। कुछ कारकों के आधार पर इस बात को आसानी से समझा जा सकता है, जो इस प्रकार हैं –
- कार्य सम्पूर्ण करने के लिए मिलने वाला समय
इंटरप्रेटर को ज्यादातर वक्ता के तुरंत बाद या साथ-साथ ही बोलना होता है, वहीं दूसरी तरफ ट्रांसलेटर को रिसर्च करने और कार्य को सबसे प्रभावी रूप में प्रस्तुत करने के लिए बहुत समय मिलता है।
- अनुवाद में सटीकता की आवश्यकता
चूंकि लिखित अनुवाद को सालों तक पढ़ा जाना है, ट्रांसलेटर का हमेशा और एकदम सटीक होना बहुत ज़रूरी है। दूसरी ओर, मौखिक अनुवाद का मुख्य आशय लोगों को वक्ता द्वारा कही गयी बात तेज़ी से समझाना होता है, इसलिए इस कार्य में थोड़ी-बहुत अशुद्धियों की स्वीकृति होती है।
- कलात्मकता
किसी पुस्तक, शोधकार्य, ऐतिहासिक लेख या तकनीकी सामग्री का भाषा-परिवर्तन करते समय उसमें अपनी कलात्मकता दिखाने की कोई गुंजाइश नहीं होती। हालांकि द्विभाषियों को कुछ हद तक स्थानीय भाषा के मुहावरों, कहावतों या अन्य ऐसे शब्दांशों का प्रयोग करने की छूट होती है, जिससे सुनने वालों को समझने में सरलता हो।
एक गौर देने वाली बात यह भी है कि भाषांतरकार के पास बात समझाने के लिए कम समय होता है, और स्थानीय बोली में उपस्थित वाक्यांश उनका काम सरल कर देते हैं। दूसरी तरफ, असली लेखक की बात बिना शब्दों में हेर-फेर किए लोगों तक पहुंचाना अनुवादक का काम है।
- कार्य में दक्षता
जहाँ अनुवादक के पास विषय को समझने, उसके बारे में जानकारी इकठ्ठा करने और सम्बंधित लोगों से सलाह-मशवरा करने के लिए काफ़ी समय होता है, वहीं भाषांतरकार को बात को तुरंत या कभी-कभी, साथ-साथ भी अनुवादित करके बोलना हो सकता है। इसलिए भाषांतरकार का उसके मुख्य कार्य में दक्ष होना अधिक आवश्यक है। हालांकि, निपुणता दोनों के लिए ही अनिवार्य है।
- आवश्यक कुशलताएँ:
भाषान्तरकारों के लिए – एक भाषांतरकार का अच्छा श्रोता और वाचाल होना बहुत आवश्यक है। दुभाषिए बनने के लिए व्यक्ति की समझने और याद रखने की क्षमता भी अव्वल दर्जे की होनी चाहिए।
अनुवादकों के लिए – अनुवादक की शोध की क्षमता अच्छी होनी चाहिए। एक अनुवादक के लिए विषय और भाषा का ज्ञान रखना भी अनिवार्य है, जिससे वह मुख्य लेखक की बात का मर्म खोये बिना उसे पाठकों तक पहुंचा सके।
उम्मीद है अब आप समझ गए होंगे कि यह दोनों कार्य एक ही प्रकार के होते हुए भी कितने भिन्न हैं। इसीलिए, अगली बार इन दोनों का अदल-बदल कर प्रयोग करने से पहले सोच लीजिए।